Hindi English Wednesday, 08 May 2024
BREAKING
उपायुक्त डा. यश गर्ग ने किया शिशुगृह का दौरा दिव्यांग विद्यार्थियों ने की योग उत्सव में भागीदारी जिला न्यायालय पंचकूला और उपमंडल स्तरीय न्यायालय कालका में 11 मई को होगा राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन लोकसभा आम चुनाव-2024 के लिए अंतिम मतदाता सूची का हुआ प्रकाशन अस्थमा के लक्षणों को जल्दी पहचानने से फेफड़ों के बेहतर स्वास्थ्य और अस्थमा के गंभीर हमलों को रोकने में मदद मिल सकती है: डॉ. मोहित कौशल पीठासीन (पीओ) और सहायक पीठासीन अधिकारियों (एपीओ) की राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में चल रही ट्रेनिंग हुई संपन्न एक्सपेंडिचर अब्जर्वर लोकसभा अंबाला ने चुनाव निगरानी के लिए गठित विभिन्न टीमों के साथ आयोजित की बैठक पंजाब का पहला पार्किंसंस सपोर्ट ग्रुप लॉन्च किया आचार संहिता के दौरान कैश, शराब, हथियार आदि पर निगरानी रखने के लिए किया गया उड़न दस्ते व स्थैतिक निगरानी टीमों का गठन अक्षय तृतीय के दिन बाल विवाह रोकने के लिए अधिकारियों की टीम गठित - उपायुक्त

विविध / कथा कहानी

More News

डॉ वी.वी गिरी के 120 वीं जन्म दिवस पर उनके सामाजिक दृष्टिकोण पर चर्चा

Updated on Tuesday, August 19, 2014 10:51 AM IST

नई दिल्ली – बीते सप्ताह कंसटीटयूशन क्लब में भारत के चतुर्थ राष्ट्रपति डॉ वी.वी गिरी के 120 वीं जन्म दिवस समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भारत रत्न डॉ गिरी के सामाजिक दृष्टिकोण पर चर्चा हुई ही साथ साथ इस महान श्रमजीवी नेता के जन्मदिन के अवसर पर भारत में महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा पर भी सार्थक एवं सकारात्मक चर्चा हुई।

 

हम जानते हैं की भारतीय समाज का सम्पूर्ण ताना -बाना स्त्रिओं पर ही केन्द्रित है,फिर भी 21वीं सदी के पहले दशक के बीत जाने के बाद भी हम भारतीय महिलायों की सामाजिक सुरक्षा को स्थापित नहीं कर पाए। यह एक अत्यंत गंभीर विषय है। इस सामाजिक समस्या को देखते हुए हमारी संस्था कंसर्न (CONCERN), प्युसर (PWESCR), नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, कबीर के लोग और निदान के संयुक्त तत्वावधान में इस परिचर्चा को आयोजित किया गया ।

 

देश के चतुर्थ  राष्ट्रपति की पुत्रबधू और जानी -मानी सामाजिक चिन्तक मोहिनी गिरी इस आयोजन में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थी। डॉ मोहिनी गिरी ने कहा की इस देश में ना कानून की कमी है ना संसाधन की ,कमी है तो सिर्फ उसके क्रियान्वयन की। अगर संसाधनों का सही उपयोग और कानून का समय पर अनुपालन हो जाये तो लगभग सभी समस्या से हमें छुटकारा मिल सकती  है।

 

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे भूतपूर्व केंद्रीय मामव संसाधन राज्य मंत्री, डॉ संजय पासवान ने अपने उद्बोधन में कहा की सरकार, संस्था और समाज को अब मिल कर के काम करने का समय आगया है। कोई भी सरकार हो या फिर कितनी भी बड़ी संस्था हो अगर वो समाज के आम जन मानस से जुड़ कर जब काम करेगी तो समाज सामाजिक और आर्थिक दोनों रूप से मजबूत होगा।

 

प्युसर की कार्यकारी निदेशक प्रीति दारूका ने अपने सामाजिक संगठन द्वारा किये जा रहे प्रयासों के बारे में विस्तृत जानकारी दी और भारत सरकार से आग्रह किया की वो इस विषय को और गंभीरता से ले और महिला श्रम की पहचान करें।

 

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित रश्मि सिंह (NMEW) ने महिलायों के समक्ष आने वाली कई समस्यों का जिक्र किया जिन में मुख्य रूप से एक खिड़की योजना पर बहुत बल दिया एवं इस से होने वाले फायदों से हमें अगवत करवाया। वही निदान से आये रंजन कुमार का कहना था की अभी भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग वंचित है और उनमे भी महिलायों की संख्या सर्वाधिक है,इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है की हम अपने कार्य क्षेत्र को देश के हर पंचयत तक पहुंचे और पहुचाएं।

 

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ महेश्वर सिंह ने ये आश्वासन दिया की महिलायों से सम्बंधित सभी कानूनी दाव -पेंचो को समझने और उसे सुलझाने में हम हर प्रकार से आप सब की मदद करगें। इस कार्यक्रम का संचालन  कंसर्न के अध्यक्ष आशीष कंधवे ने किया और कहा की  भारतीय महिलाओं का सही मायनों में सशक्तिकरण आर्थिक, दैहिक, मानसिक (निर्णय लेने की स्वतंत्रता) स्वतंत्रता के साथ आत्मिक स्वतंत्रता से भी सीधे सम्बद्ध है क्योंकि इन्ही सब स्तरों पर उसे समाज द्वारा स्वतंत्र इन्सान का दर्जा दिया जाता है। जाने-अनजाने  में पिछली कुछ दशकों  से हमने इन विषयों पर इतनी कोताही की है कि आम भारतीय महिला के जेहन में यह बात आती ही नहीं कि उपरोक्त स्वतंत्रताएं उसके भारतीय नागरिक होने के अधिकार क्षेत्र में आती हैं।

 

भारत में अधिकांश महिलाओं की बचपन से परवरिश ही इस तरह की जाती है कि उन्हें घरेलू सामंजस्य या रीति रिवाज/परिपाटी के नाम पर जिंदगी भर बस सहन करते रहना है की सीख दी जाती है । इस जन्म घुट्टी के साथ पली बढ़ी महिलाएं घरेलू हिंसा, आर्थिक तंगी, सामाजिक असुरक्षा को भी अपनी नियति मान खामोशी से सहन करती चली जाती हैं, जिसका भयानक परिणाम आज हमें देखने को मिल रहा है।

 

इस परिचर्चा में देश के लगभग 50 से अधिक सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, सामाजिक चिन्तक एवं शोधार्थीओं ने भाग लिया।

Have something to say? Post your comment
X