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वामा कला प्रदर्शनी : सांस्कृतिक पहचान को उजागर करती 20 महिला कलाकारों की कलाकृतियों का प्रदर्शन

Updated on Tuesday, December 17, 2024 09:07 AM IST

वामा कला प्रदर्शनी 14-21 दिसंबर तक त्रिवेणी कला संगम में

नई दिल्ली। साहित्य कला परिषद, एनसीटी सरकार, दिल्ली त्रिवेणी कला संगम की श्रीधरनी गैलरी में 14-21 दिसंबर तक वामा कला प्रदर्शनी का आयोजन कर रही है, जिसमें दिल्ली की 20 प्रतिष्ठित महिला कलाकारों की उत्कृष्ट कलाकृतियां शामिल हैं। इसका उद्देश्य समावेशिता और रचनात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ावा देते हुए कला जगत में महिलाओं के योगदान का जश्न मनाना एवं उन्हें सशक्त करना है।

शनिवार, 14 दिसंबर की शाम त्रिवेणी कला संगम में वामा कला प्रदर्शनी के उद्घाटन के अवसर पर कला प्रेमियों की भारी भीड़ एकत्रित थी। दिल्ली के कला, संस्कृति और भाषा मंत्री सौरभ भारद्वाज ने महिला कलाकारों की सराहना करते हुए कहा, दिल्ली हमेशा से कला-अभिव्यक्ति का केंद्र रही है और यह प्रदर्शनी महिला कलाकारों की अपार प्रतिभा को बढ़ावा देने और उसका जश्न मनाने की हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। 'वामा' सिर्फ एक प्रदर्शनी नहीं, बल्कि उन महिलाओं को पहचानने और सशक्त बनाने का एक मंच है जो अपनी रचनात्मकता के माध्यम से हमारी सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करती हैं।


इस प्रदर्शनी में दर्शकों को दिल्ली की महिला कलाकारों के विभिन्न दृष्टिकोण और माध्यमों को दर्शाते विविध कला रूपों को देखने का मौका मिलेगा। प्रदर्शनी में एक-से-एक कलाकृतियां हैं, जो हमें सांस रोककर उस कला-संसार में विचरण करने को मजबूर करते हैं। जैसे कि नीलांजना नंदी की दिस साइड-दैट साइड, ग्रिड स्थानों के माध्यम से अलगाव और विभाजन की पड़ताल करती है।

नीलांजना ने कहा कि इसकी शुरुआत 2021 के अंत में हुई और समापन 2023 में। सिरेमिक मूर्तियों से बनी एंजेलिका बसाक की ब्रीद सीरीज अराजकता और शांति के बीच संतुलन का आभास कराती है। इसी तरह, रश्मि खुराना का मिक्स-मीडिया वर्क एक्रेलिक और कागज के बेजोड़ मेल से अद्वितीय रचनात्मक तकनीकों को व्यक्त करता है।

 


शंपा सरकार दास ने कैनवास पर एक्रेलिक के जरिये मयूर सीरीज पेश किया है। उन्होंने इसके बारे में बताया कि उनका काम जीवन के अंतर्संबंध का जश्न मनाता है, जिसमें मोर महिमा का प्रतीक है और कमल आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है।


प्रदर्शनी में अदिति अग्रवाल की डिप्टीच ड्रीम 6 और 7 गम सबका ध्यान आकृष्ट करती है, जो बाइक्रोमेट प्रोसेस के जरिये स्मृति, पहचान और अनिश्चितता को दिखाती है। अपने काम के बारे में अदिति कहती हैं, कलाकृति उन्हें कलाधाम में एक अधूरे स्टूडियो में कैद करती है, जो अतियथार्थवादी और डिस्टॉपियन तत्वों से घिरा हुआ है। एक पैनल में उसे ग्रेनाइट जैसे सूरज के नीचे चित्रित किया गया है, जबकि दूसरे में अस्थिर चमक बिखेरते दो सूरज दिखाए गए हैं। अपने दिवंगत पिता का कैमरा स्टैंड (स्मृति और कनेक्शन का प्रतीक) पकड़े हुए अदिति पहचान, परिवर्तन और अनिश्चितता जैसे विषयों पर काम करती हैं।


यहां, दर्शकों को दुर्गा कैंथोला की यात्रा वृतांत डायरीज में भी डूबने का मौका मिलेगा, जो पारंपरिक और समकालीन तत्वों के सुंदर मेल से पहचान, आघात और वैश्विक अंतर्संबंध जैसे विषयों की खोज करता है।


अपनी फोटोग्राफी के बारे में विस्तार से बताते हुए रश्मि चौधरी कहती हैं, उनकी काम स्टोरीटेलिंग और दृश्य कला का मिश्रण है जो गूढ़ विषयों को कैप्चर करता है। गूंज में दु:ख और आशा की परस्पर जुड़ी हुई आवृत्तियां परिलक्षित होती हैं, जो भूली हुई आवाज़ों को सुनाने की कोशिश है, साथ ही रंग की चमक अंधेरे को चीरते हुए आशावाद की सुबह का प्रतीक है। जबकि अनंत में कालातीत आकर्षण के साथ एक ऐतिहासिक गलियारे का चित्रण किया है, जो ब्रह्मांड की विशालता और जीवन की अनंत परतों को उजागर करता है। उनका कार्य लचीलापन, अर्थ और असीमित संभावनाओं की खोज करते हुए, अंदर और बाहर दोनों तरफ से चल रही यात्रा का प्रतीक है।


कविता नायर की ट्रांसेंडिंग ऑयल पेस्टल मानवीय भावना की खोज करती दिखती है। जबकि ऋचा नवानी की कला कई माध्यमों तक फैली है, जो कलाकृति प्रकृति और रीति-रिवाजों से प्रेरित है और ज्यामितीय अमूर्त प्रतीकों के साथ लिंग राजनीति, कामुकता और पारिस्थितिकी जैसे विषयों को संबोधित है।


प्रतिभा सिंह ने अपनी कला-यात्रा के बारे में कहा, 'मैं बनारस के घाटों के पास पली-बढ़ी हूं, जिसने मेरी कलात्मक दृष्टि को बहुत प्रभावित किया है। शेप ऑफ थिंग्स टू कम और ट्रांसफॉर्मर जैसी सीरीज सहित मेरे काम, मनुष्यों, मशीनों और जानवरों के बीच संबंधों का पता लगाते हैं। मेरी वर्तमान सीरीज, टेराफॉर्म, पेपर पल्प और कॉयर फाइबर जैसे मिक्स मीडिया का उपयोग करके वैकल्पिक आवास की तलाश करने वाली मानवीय स्वभाव को दर्शाती है।


इसी तरह, दीपा पोटरे का काम रेशम और कपास के मेल से बचपन की यादों और असमियां परंपरा के दर्शन कराता है, जबकि वंदना कुमारी की फोटोग्राफी ग्रामीण जीवन और प्रवासी कहानियों के लचीलापन और सुंदरता को बयां करती है।


प्रदर्शनी 21 दिसंबर तक प्रतिदिन सुबह 11.00 बजे से रात 8.00 बजे तक खुली रहेगी।

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