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क्या करें, कैसे मनाएं श्रीमहाशिवरात्रि - मदन गुप्ता सपाटू

Updated on Friday, February 13, 2015 14:32 PM IST

चंडीगढ़ – श्रीमहाशिवरात्रि का पर्व 17 फरवरी मंगलवार को पड़ रहा है। इस साल 18 फरवरी को चतुर्दशी तिथि का क्षय हो रहा है।  इस तिथि के स्वामी भगवान शिव माने गए हैं। अर्थात भगवान शिव की तिथि ही चतुर्दशी मानी जाती है। यह तिथि बुधवार को प्रातः 9 बजकर 02 मिनट पर टूट जाएगी। अतः व्रत 17 तारीख को ही रखना तर्कसंगत होगा। एक मतानुसार 18 तारीख को व्रत , पूजन आदि किया जा सकता है। इस दिन बुध श्रवण नक्षत्र में तथा षुक्र उत्राभाद्रपद नक्षत्र में प्रवेष करेंगे। 

 

इस दिन काले तिलों सहित स्नान करके व व्रत रख के रात्रि में भगवान शिव की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन अर्थात अमावस के दिन मिष्ठानादि सहित ब्राहम्णों तथा शारीरिक रुप से असमर्थ लोगों को भोजन देने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत महा कल्याणकारी होता है और अष्वमेध यज्ञ तुल्य फल प्राप्त होता है।

 

इस दिन किए गए अनुष्ठानों, पूजा व व्रत का विषेश लाभ मिलता है। इस दिन चंद्रमा क्षीण होगा और सृष्टि को उर्जा प्रदान करने में अक्षम होगा। इसलिए अलौकिक शक्तियां प्राप्त करने का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय होता है जब ऋद्धि- सिद्धि पा्रप्त होती है। इस रात भगवान शिव का विवाह हुआ था।

 

भारतीय जीवन में ऐसे लोक पर्व वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में भले ही धूमिल हो रहे हों परंतु इनका वैज्ञानिक पक्ष आस्था के आगे उजागर हो नहीं पाता। भारतीय आस्था में चाहे सूर्य ग्रहण हो या कुंभ का पर्व, दोनों ही समान महत्व रखते हैं। शिवरात्रि एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्व है जो देश के हर कोने में मनाया  जाता है।

 

मान्यता है कि सृश्टि के आरंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रह्म से रुद्र के रुप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोश के समय शिव तांडव करते हुए ब्रहाण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए, इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा जाता है। काल के काल और देवों के देव महादेव के इस व्रत का विषेश महत्व है। एक मतानुसार इस दिन को शिव विवाह के रुप में भी मनाया जाता है। ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्द्धरात्रि के समय करोड़ों सूर्य के तेज के समान ज्योर्तिलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।

 

स्कंद पुराण के अनुसार - चाहे सागर सूख जाए, हिमालय टूट जाए, पर्वत विचलित हो जाएं परंतु शिव - व्रत कभी निश्फल नहीं जाता। भगवान राम भी यह व्रत रख चुके हैं।

 

व्रत की परंपरा

प्रातः काल स्नान से निवृत होकर एक वेदी पर ,क्लश की स्थापना कर गौरी शंकर की मूर्ति या चित्र रखें । क्लश को जल से भर कर रोली, मौली, अक्षत, पान सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगटटा्, धतूरा, विल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें और शिव की आरती पढ़ें। रात्रि जागरण में शिव की चार आरती का विधान आवश्यक माना गया है। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ भी कल्याणकारी कहा जाता है।

 

चेतावनी

भगवान शंकर पर अर्पित किया गया नेवेद्य , खाना निशिद्ध माना गया है। त्रयोदशी के दिन एक समय आहार ग्रहण कर चतुर्दशी के दिन व्रत करना चाहिए।

 

विशेष

बेल पत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। इसका चिकना भाग शिवलिंग से स्पर्श करना चाहिए। नील कमल भगवान शिव का प्रिय पुश्प माना गया है। अन्य फूलों मे कनेर, आक, धतूरा, अपराजिता, चमेली, नाग केसर, गूलर आदि के फूल चढ़ाए जा सकते है। जो पुश्प् वर्जित हैं वे हैं- कदंब, केवड़ा ।

 

विभिन्न सामग्री से बने षिवलिंग का अलग महत्व

फूलों से बने शिवलिंग पूजन से भू-संपत्ति प्राप्त होती है। अनाज से निर्मित शिवलिंग स्वास्थ्य एवं संतान प्रदायक है। गुड़ व अन्न मिश्रित शिवलिंग पूजन से कृषि संबंधित समस्याएं दूर रहती हैं। चांदी से निर्मित शिवलिंग धन- धान्य बढ़ाता है। स्फटिक के वाले से अभीश्ट फल प्राप्ति होती है। पारद शिवलिंग अत्यंत महत्वपूर्ण है जो सर्व कामप्रद, मोक्षप्रद, शिवस्वरुप बनाने वाला, समसत पापों का नाष करने वाला माना गया है।

 

शिवरात्रि पर करें कालसर्प या राहू योग का निवारण

चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा, हलवा, सरसों का तेल, काला सफेद कंबल शिवलिंग पर अर्पित करें। महामृत्युंज्य मंत्र की कम से कम, एक माला -108 मंत्र अवष्य पढ़ें।

 

मुख्य मंत्र

- ओम् नमः षिवाय

- ओम् नमो वासुदेवाय नम 

- ओम् राहुवे नमः

- महामृत्युंज्य मंत्र- ओम् त्रयंम्बकं यजामहे सुगंधिं पुश्टिवर्धनं!

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्!!

 

- अधिक जानकारी के लिए संपकऱ् करें - मदन गुप्ता सपाटू , ज्योतिशविद् , चंडीगढ़ , मो0 98156-19620

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