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इन्सान अपने मूल अस्तित्व को ही भूल बैठा है - निरंकारी बाबा

Updated on Friday, May 23, 2014 15:10 PM IST

मेरठ  - राष्ट्रीय राजमार्ग-58, मेरठ बाईपास रोड पर स्थित श्रद्धापुरी फेस-दो, कंकरखेडा के एल0आई0सी0 मैदान में आयोजित सत्संग में श्रद्धालुओ को आर्शीवाद प्रदान करते हुए सदगुरू बाबा हरदेव सिह जी महाराज ने कहा कि यह विशाल उमडता हुआ मानवता का संसार भक्ति की सुगन्घ प्रवाहित कर रहा है आपने कहा है कि इन्सान विपरीत फितरत से कार्य करके इन्सान के अस्तित्व को ही मिटाने पर आमदा है यह सतों का ही योगदान है कि मानव जाति का अस्तित्व कायम है। संत ऐसे योगदान देते आये है वास्तव में संतों की मति को धारण करने वाले ही है जो अग्नि भरे ससार में जल का रूप बनकर मानव जाति के अस्तित्व को बचा रहे है इन्सानी जन्म मिला है इंसानी रूतबा हासिल करने के लिए लेकिन इंसान अपने मूल अस्तित्व को ही भूल गया है। इससे नाता तोडकर जीवन जी रहा है इससे नाता टूटा यानि दया, करूणा, विनम्रता, सहनशीलता, विशालता से नाता टूटा यह इन्सान रहा ही नही।

 

 इंसान का रूप सुन्दर भावनाओं से ही निखर सकता है उन्होने कहा कि इंसान, इंसान होकर भी इंसानियत के गुणो का इजहार नही कर पा रहा है इसी संदर्भ में कहा गया है कि...

श्आम सी बात है भगवान बनाने का हुनर, तुम किसी संग को इन्सान बनाकर देखोश्

 

इंन्सान पत्थर की मूर्ति को भगवान के रूप में पूजता है लेकिन इंन्सान को इंन्सान बनाना बहुत कठिन है इंन्सान के जीवन में अगर यह आघ्यात्मिक क्रान्ति घटित हो जाये तो धरती स्वर्ग बन सकती है उन्होने कहा कि भेदभाव की दीवारों में घिरा इंन्सान एक दूसरे को ही बाटने में लगा है जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति आदि के आधार पर इंसान को इन्सान से जुदा करने पर आमदा है सद्गुरूदेव हरदेव जी ने कहा कि प्रभु को ही विशेषता दी है इसी पर आधारित संसार है प्राकृतिक रूप से होने वाले बदलाव का दुनियावी वस्तुओं पर ही असर पडता है यह अडोल, स्थिर, शाश्वत, परमसता है जो बदलाव से रहित है जो इसके साथ जुड जाते है वे भी अडोल अवस्था प्राप्त कर लेते है आपने कहा कि कुदरत की हर चीज परिर्वतनशील है एक पल में तेज हवा चलने लगती है और दूसरी पल सब सामान्य हो जाता है परिर्वतन प्रकृति का नियम है इसी लिए कहा है कि यदि प्रभु के रंग में रंग रहतें है इसका आधार लेते हुए जीवन का सफर तय करते है तो जीवन में सहजता कायम रहती है समय अपनी गति से निरंतर आगे बढ रह रहा है बीतती हुई घडियों को आनन्ददायक बना सकते है जब प्रभु की याद बनी रहती है तन, मन, धन की पवित्रता तभी होगी जब हम इन्हें परोपकार में लगायेंगे इस धरती पर बसने वाले इन्सान एक प्रभु की सन्तान है वासूदेव कुटुम्बकम् समस्त इन्सान एक ही परिवार के अंग है।

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